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भारत के फार्मा और आईटी सेक्टर को मिल सकता है फायदा, इजराइल गाजा संघर्ष के खत्म होने के बाद

इजराइल-गाजा शांति समझौता और वैश्विक बाजार स्थिरता

अक्टूबर 2025 दो साल चले इजराइल गाजा झगड़े के बाद आखिरकार शांति समझौते पर दस्तखत हो गए हैं. इजराइल गाजा शांति समझौता न सिर्फ मिडिल ईस्ट के लिए बल्कि पूरी दुनिया की इकोनॉमी के लिए भी बहुत जरूरी माना जा रहा है. सवाल ये है कि क्या इस समझौते से ग्लोबल बाजारों को राहत मिलेगी या फिर इसका प्रभाव छोटा रहेगा?

शांति समझौते का बैकग्राउंड

अक्टूबर 2023 में शुरू हुआ इजराइल और गाजा के बीच का युद्ध दो साल तक चला. इस दौरान हजारों लोग मारे गए और मिडिल ईस्ट में अशांति बढ़ी. हाल ही में अमेरिका की अगुवाई में एक शांति योजना पेश की गई. दोनों पक्षों ने इस पर सहमति जताई और पहले चरण में कैदियों की रिहाई और सैनिकों की वापसी का फैसला हुआ. यह कदम भले ही राजनीतिक तौर पर अच्छा हो, लेकिन ग्लोबल बाजारों पर इसका असर अभी कम ही रहेगा.

ग्लोबल मार्केट्स का रिएक्शन

इस शांति समझौते के बाद विश्व बाजारों में कोई खास तेजी नहीं दिखी. एशिया और यूरोप के बाजार स्थिर रहे, जबकि अमेरिकी बाजारों में थोड़ा-बहुत उतार-चढ़ाव देखा गया. विशेषज्ञों का कहना है कि अब बाजार सिर्फ राजनीतिक खबरों पर नहीं, बल्कि आर्थिक आंकड़ों और केंद्रीय बैंकों की नीतियों पर ज्यादा ध्यान देते हैं.

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दूसरे शब्दों में, हर “अच्छी खबर” बाजार को ऊपर नहीं ले जाती. यही वजह है कि इजराइल-गाजा शांति समझौते जैसी बड़ी खबर का भी बाजार पर सीधा असर नहीं हुआ.

कच्चे तेल और सोने की कीमतों पर असर

युद्ध के दौरान कच्चे तेल के दाम बढ़े थे, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अब इस समझौते से तेल की कीमतों पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा कच्चे तेल के दाम अभी स्थिर हैं. ओपेक देशों की नीतियां मांग ही इसका मुख्य कारण हैं.

वहीं, सोने की कीमतों में गिरावट की उम्मीद के उलट, गोल्ड की तेजी बनी हुई है. आजकल सोने की कीमतों में बढ़ोतरी को सिर्फ राजनीतिक जोखिम से नहीं, बल्कि डॉलर की कमजोरी और केंद्रीय बैंकों की बढ़ती खरीदारी से जोड़ा जा रहा है.

भारत जैसे देशों ने पहले ही सोने में बड़ा निवेश किया था, जिसे अब दुनिया भर में समझदारी भरा कदम माना जा रहा है. चीन, रूस और स्विट्जरलैंड जैसे देशों के केंद्रीय बैंक भी सोना खरीदकर अपने भंडार मजबूत कर रहे हैं.

अमेरिकी टैरिफ और भारत अमेरिका रिश्ते

अमेरिकी राजनीति में अभी टैरिफ का झगड़ा जोरों पर है. हाल ही में 19 अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति ट्रंप को चिट्ठी लिखकर भारत पर लगे भारी टैरिफ का विरोध किया. उनका कहना है कि ये टैरिफ अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग और ग्राहकों को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

हालांकि, अब तक अमेरिका की तरफ से कोई बड़ा बदलाव की घोषणा नहीं हुई है. फिर भी फार्मा सेक्टर के लिए अच्छी खबर है  ट्रंप ने साफ कहा है कि वे जेनरिक दवाओं पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने के खिलाफ हैं. इससे सीधा फायदा भारतीय फार्मा सेक्टर और निवेशकों को मिल सकता है.

भारतीय बाजारों का हाल

भारतीय बाजारों में विदेशी निवेशक (FII) और देसी निवेशक (DII) दोनों की खरीदारी कम रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक संकेत साफ नहीं होंगे, भारतीय निवेशक सावधान रहेंगे. आईटी सेक्टर, खासकर TCS, पर सबकी नजरें हैं क्योंकि कंपनी जल्द ही अपने तिमाही नतीजे बताएगी. साथ ही, फार्मा शेयरों में हल्की तेजी दिख सकती है. निवेशकों के लिए यह समय सतर्क रहने और लंबे समय की योजना बनाने का है.

आर्थिक स्थिति और भविष्य की राह

“मिडिल ईस्ट शांति”, “तेल के दाम”, “ विश्व बाजार”, “फार्मा सेक्टर” और “आर्थिक असर” इस खबर के आर्थिक पक्ष को साफ करते हैं. अगले कुछ हफ्तों में बाजार की दिशा तेल की कीमतों, डॉलर की ताकत और अमेरिकी ब्याज दरों पर निर्भर करेगी.

अगर शांति बनी रहती है और तेल की सप्लाई में कोई रुकावट नहीं आती, तो विश्व बाजार स्थिर रह सकते हैं. फिर भी, निवेशकों को जल्दबाजी में फैसले लेने से बचना चाहिए.

इजराइल-गाजा शांति समझौता यकीनन एक ऐतिहासिक और इंसानी नजरिए से अच्छा कदम है. लेकिन आर्थिक दृष्टि से इसका असर सीमित और धीरे-धीरे दिखेगा.

विश्व बाजार अभी स्थिरता की ओर बढ़ रहे हैं. भारतीय निवेशकों के लिए यह मौका है कि वे लंबे समय की निवेश योजना पर ध्यान दें. तेल और सोने जैसे सामानों में अभी उतार-चढ़ाव कम रह सकता है. लेकिन फार्मा और आईटी जैसे क्षेत्रों में कुछ अच्छे रुझान दिख सकते हैं.

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